K a v i t a S h a r m a
Sweden
नदिया सा बहना चाहती हूँ
पंछी सा उड़ना चाहती हूँ
बस थोड़ा हंसना चाहती हूँ
बस थोड़ा बढ़ना चाहती हूँ
मैं मंदिर में , मैं मस्जिद मे,
बस्ती हूं हर एक के दिल में
बस थोड़ा सजना चाहती हूँ
मैं थोड़ा पढ़ना चाहती हूँ
हो रहने वाली महलों में या
जीने वाली खेतों में
अपने आंगन में माँ के संग
मैं लोरी सुनना चाहती हूँ
जब कॉलेज को मैं जाती हूँ
इठलाती हूँ, मुस्काती हूँ
उनकी नज़रो में खुद को सिर्फ
एक मांस का टुकड़ा पाती हूँ
जब नोचा मुझको जाता है
क्यों कोसा मुझ को जाता है
तुम ऐसी हो, तुम वैसी हो
क्यों टोका मुझको जाता है
वो आंचल मेरा उड़ाते हैं
तुम कैंडल मार्च चलाते हो
सिर्फ वाट्सएप्प FB ट्वीटर पर
संग साथ नज़र तुम आते हो
कभी निर्भया कभी प्रियदर्शिनी
कभी हाथरस तो कभी उन्नाओ
कभी कठुआ कभी हैदराबाद
जाने कितने किस्से तुम्हे सुनाऊ
चाहे हो सड़क, दफ्तर, या हो देवालय
हॉस्पिटल, बाजार, या हो विश्व विद्यालय
मेहफ़ूज़ नहीं रही अब माँ की भी कोख
कौन सुनेगा फरियाद मेरी कौन सकेगा रोक
अपनी बहनों सा मुझको भी
भैया तुम बहना मानो ना
अपनी बिटिया के जैसे तुम
मुझको भी गले लगा लो ना
हूँ जानती मैं ,तुम जानते हो
हूँ मानती मैं , तुम मानते हो
मुझको हक जीने लड़ने का
जी भर के साँसे भरने का
बस थोड़ा हंसना चाहती हूँ
बस थोड़ा उड़ना चाहती हूँ
सच कहु गर मानो जो
मैं भी जीना चाहती हूँ, मैं सिर्फ जीना चाहती हूँ